संक्षिप्त इतिहास
* स्व. राजा वीरेन्द्र बहादुर सिंह शासकीय महाविद्यालय सरायपाली की स्थापना 1 जुलाई 1972 को बागबाहरा शिक्षा समिति के द्वारा की गई थी। इस महाविद्यालय में स्थापना वर्ष 1972 से ही स्नातक स्तर पर हिंदी विषय के अध्ययन की व्यवस्थ सतत् रूपेण उपलब्ध है।
* स्थापना काल में इस महाविद्यालय का नाम फुलझर महाविद्यालय सरायपाली रखा गया था। फुलझर अंचल के छात्र-छात्राओ में हिंदी के प्रति विशेष अभिरुचि को ध्यान में रखते हुए सन् 1982 से स्नातकोत्तर स्तर पर हिन्दी की कक्षाएँ प्रारंभ की गई। किंतु सन् 1988 को महाविद्यालय के शासकीयकरण के समय तकनीकी बाधा के कारण स्नातकोत्तर स्तर पर हिन्दी की कक्षाएँ बंद कर दी गई।
* इस अंचल के विद्यार्थियों की अभिरूचि एवं माँग को ध्यान में रखते हुए तकनीकी बाधा को दूर कर सन् 2008 से पुन: स्नातकोत्तर स्तर पर हिंदी की कक्षाएँ प्रारंभ की गईं।
* महाविद्यालय की स्थापना में सर्वप्रथम पदस्थ प्राचार्य श्री प्रेमशंकर सिंह 'प्रांजल' हिंदी के प्राध्यापक थे। हिंदी के प्रथम विभागाध्यक्ष डॉ. एन.पी. उपाध्याय अत्यंत कुशल एवं साहित्यिक प्रतिभा से संपन्न व्यक्तित्व के धनी थे, जिन्होंने छत्तीसगढ़ी रामायण 'कौशल्या नंदन' की रचना की एवं 'श्रीमद् भागवत गीता' का छत्तीसगढ़ी में अनुवाद किया।
* राजा वीरेन्द्र बहादुर सिंह की पुत्री राजकुमारी सुश्री पुखराज सिंह भी हिंदी विभाग में सहायक प्राध्यापक के रूप में पदस्थ थीं, जो बाद सरायपाली विधानसभा क्षेत्र की विधायक के रूप में निर्वाचित हुईं।
* महाविद्यालय के शासनाधीन होने के उपरांत डॉ. संध्या भोई एवं श्री गणेश लाल जैन हिंदी के नियमित प्राध्यापक के रूप में पदस्थ थे।
*वर्तमान में हिंदी विभागाध्यक्ष के रूप में डॉ. संध्या भोई एवं सहायक प्राध्यापक के रूप डॉ. चंद्रिका चौधरी कार्यरत हैं। विभाग में स्थान रिक्त होने पर सतत् रूपेण शिक्षण कार्य संचालित करने की आवश्यकतानुसार अतिथि व्याख्याताओं की नियुक्ति की जाती है। श्री अनिल ताण्डी वर्तमान में अतिथि व्याख्याता हैं।